“ सियाला के भजन "
ये भजन आसोज सुद १० (दसम) से शुरु होकर माघ वद १० (दसम) तक चलते है। और बाद में माघ सुदी ५ (पाचंम) यानि बसंत पंचमी से फागो के भजन शुरु हो जाते है |
ए) “सियाला में वीरघंटा के नीचे बोले जाने वाला भजन”
भल जावो राजा रुपजी
अब तो जाईयेरा सोनारा रुपनारायण
बी) “सियाला में रसोडा के पास बोले जाने वाला भजन ”
आवो जनक सीता मोइयो दशरथ रा सब देवता .........................
सी) “सियाला में मंदीर के पीछे बोले जाने वाला भजन ”
आवोसरसत सिमरु शारदामाता, परघट वेगा पधारो ...................
डी) “सियाला में धरुपोल के पास बोले जाने वाला भजन (श्लोक के बाद)”
आवोसाज सवेरे गिरधारी ओ माने आ रत प्यारी ओ ...................
ओदशअवतारमिल्याओ मे देख्या ............................
ई) “सियालामें हनुमानजी के पास बोले जाने वाला भजन”
जानेमार सके नर को ए श्री रामजी उबारीया ............................
एफ) “सियाला में गेर रा चौक मे बोले जानेवाला भजन ”
ओ भली कीदी भवन पधारो राजा रुप .............................
जी) “सियालामें अन्त में वीरघंटा के नीचे बोले जानेवाली आरती ”
गावो नी मंगल गावो नी विदईयो ............................
“भल जावो राजा रुपजी ”
भल जावो राजा रुपजी
आवो देख्या रुप भूप सब पुरब दर्शन रुपाला रो वचन आ सेवन्त्री
आवो वायर वाजे ने दीयो मेरा प्रभुजी, आऊला दशम री बेल
आवो उध्दव हसे प्रकाश जो दीज्यो दर्शन रुपाला रो वचन आ सेवन्त्री
आवो उचा मंदिर धजा आप विराजे, धरणे धपी रो मनाव
आवो आपरी जोत परकाश जो दिज्यो दर्शन रुपाला रों वचन ओ सेवन्त्री
आवोमन विश्वास न हीयो मेरा प्रभुजी , चल्या रे द्वारका का जाय
आवोशंख चक्र चारो भुज बिराजे गला माला तुलसी रो वचन आ सेवन्त्री
आवो दूरा देशा रा जातरी आवे दर्शन रुपाला रो वचन आ सेवन्त्री
आवो शीतल जल गोमती रो सहिज्ये दर्शन रुपाला रो वचन ओ सेवन्त्री
माघ सुदी दसम (१०) के दिन वीरघंटा के नीचे का भजन”
अबतो जाइयेरा सोनारा रुपनारायण
अब दरसण दीज्यो ने हीयो सुख उपजे
हारे हा दरसण दरमल होई
अबमाता जो आपरी वाता सुणीजे
अब सेजनाथ ज्यारो
अबददेवल श्याम सुकलश वन्दावो ए
अब जाईयेरा सोनारा रुपनारायण
सखी नन्द कुमार ब्रज की नार
सखी कलश वन््दावो ए ब्रज की नार
सखी पुसब वन्दावो ए ब्रज की नार
आवो आम्बे मोर कसनार जो फूली
...............फुलाग सहीए ए सभी कलश बन््दावो ए ब्रज की नार ||
आवो नवनव सीर कसूम्बल पेश
................पेरणसहीएए सभी कलश वन्दावो ए ब्रज की नार | |
आवो ताल मरदंग हसली जो वाजे
.................बाजण सहीए एसभी कलश वन्दावो ए ब्रज की नार ||
आवो राधा नरुकमण फाग जो खेला
...............खेलण सहीए ए सखी कलश वन्दावो ए ब्रज की नार ||
आवो महंत कबीरा सुणो रे भाई साधु हरिचरणा गुणे गई ओ
.......................एसखी कलश वन्दावो ए ब्रज की नार | |
“सियाला में रसोडा के पास बोले जान वाला भजन”
आवो जनक सीता मोइयो दशरथ रा सब देवता
आवो बडे बडे भोपाल जो आये
दसम सख वेगा पधारो
आवो सबतो भएन की बाण मारयो, लक्ष्मण ज्यारे भाईयो दशरथ रा सब देवता
आवोएऐसो प्रण लियो है जानकी माता, रामचद्र वर मलज्यो विधाता
एजनक सुतारी ली है वरमाला, रामचंद्र जिज्यो गल माला
एकथन बनाए सुणिये अब साहेबा, चौरह भवन दोऊ मलज्यो रघुरामजी
एजायसीताजी पाय जो लागा, फेरलियो वरमाला ओ दसवा रा सब देवता
एसिताजी रो वचन सुणताए
ततताई ओ तत्काल रामजी ततआई धनुष तोडीयो ओ दसवा रा सब देवता
एपरशरामजी री सुणीए वार्ता, फरसारो होवे अयोध्या मे वासा
एदेखी ने सुणज्यो गावेला दासा, फरसारो होवे अयोध्या मे वासा
एसुरज कामी मगन भयो दासा, आनंद स्वरुपजस गावे ओ दशरथ रा सब देवता
“सियाला में मन्दिर के पीछे बोलने वाला भजन”
आवो सरसत सिमरु शारदा माता, परघट वेगा पधारो
आवो मथूरा में नारद आवियो है सूता केस जगाय
ए थोरा वेरी गोकुल वसिया, जणीने पूतना के गई
एथोरे मोमे मोडयो है झगडा ने थोने वेगा बलाय
हीमा ने डपटा कृष्णा पधारिया अ आज
उबो हो मथूरापूर सोवटे ओ आज
एबालक जाता ने बात गाली , एकलो नही मोकलो है
एनवलख धीन नन्द घर दूजे, ज्या देखो ज्याई कृष्ण है
एमातारे मन विश्वास उपज्यो, सकल में मेरा कृष्ण है
एचालीरे ग्वाल्या री मा, जानकरम वा उबी वा
हीमा ने डपटा कृष्ण पधारिया ओ आज
उबा हो मथूरापूर रे सोवटे हो आज
एएक उपर एक छाया, सुरो रे सायर सावरो
एएक ऊपर हाथ लूती, लुती रे सायर सावरो
एएक ऊपर चवर दोले, एकलो नही सावरो
एएक थारे गुगर माल देतीजा दहीडा रो दान
अब ने गुजल गुजलताओ प्यारा
हीमा ने डपटाऊ कृष्ण पखारिया ओ राज
करुणा ने वर्षोऊ जाजम राली है ओ आज
उबा हो मथूरापुर रे सोवटे ओ आज
एचकरा छोड्य्ा सान्डेरा, भाग्या जाए रे रान्डेला
एकेसमारयो काज सारयो हुआ जय जय कार
नरसीगो स्वामी सामलेओ मारी भगती भगती सुधारज्यो
“सियाला में धरुपोल के पास बोलनेवाला भजन”
नोट :- पहले सातो श्लोक बोलते है फिर भजन बोलते है
आवो साज सवेरे गिरधारी ओ माने आ रत प्यारी ओ
आवो हाथनसू दिवलो संजो विया मे तो सारी सारी रात ओ
आवो तेल झलामल प्रेम रो बालु ओ दनरात पिया माने आ रत प्यारी ओ
आवो श्रावण भादवो उलटयो, वरका रत आवियो
आवो वीज जलामल होईरे पिया नेणा जल लागो ओ गिरधारी माने आ रत
प्यारी ओ
आवो सेज अ्रंगारिया ढोलिया ने आछा फूल बिछाविया
आवो उबी तो जोऊ वाटडी, अजहून आया गिरधारी ओ माने आरत प्यारी
ओ
आवो माए बाप सब हेजिया ने, आछा प्रेम लगाविया
रघुरामजी बनातो भरतार दूजो अजहून आया गिरधारी ओ माने आरत
प्यारी ओ
आवो आपन पूर्ण पूरियाओ पूर्ण संदेशो आज
मीरा तो व्याकुल होई रही हो, अपनी कर लिज्यो ओ गिरधारी ओ माने
आरत प्यारी ओ
“सियाला में घरुपोल पर बोलने का भजन”
ओ दशअवतार मिल्याओ में देख्या
ए छोड्यो थाला धरती पर आये
ए आगन मन्दर बेमालिया ओ राधे
ए खरपा चाले पियालाओ राधे
ए माया तो मथुरा मे साजन पाछे
ए शेष करण लेने सारज करे
ए अटल रहयो रे देवताओ पाछे
ए दिल्ली सु आवेला बादशाह ओ राधे
ए हिन्दू रा देव सम्भालिया ओ राधे
ए द्वारका मे देवाजी वारताओ पूछे
ए देवाजी एकेपण राखिया पण राखे
ए ढाल तलवार चढावताओ राधे
ए कटडे तो प्रभुजी से वारताओ पूछे
ए अवसर आयो राजा रुप रे दरबार माराज
ए देशअवतार मिल्याओ मे देख्या
“सियाला में हनुमानजी के चौक में बोले जानावाला भजन”
जाने मार सके नर कोय श्रीरामजी उबारिया
आवो आगा न वागा पाडोसी जाने नूत्या नवसे निशान
आवो वायरे चडियाओ बिजलाओ, माने जिवावो श्रीरामजी उबारिया
आवो मृगला में विषदा पडीओ पिया, समरया श्री गोपाल श्री रामजी उबारिया
आवो सणती टिटोडी हरके थारा इन्डा परा रे उठाव
आवो दन दोय चार मे ओ पिया भारत होसी भारी श्री रामजी उबारिया
आवो पाँचो पाण्डव राखियाओ टीटोडीरा चार श्रीरामजी उबारिया
आवो मीरा तो व्याकुल होय रही ओ अपनी करलीज्यो श्री रामजी उबारिया
“सियाला में गेररा चौक में बोले जानावाला भजन”
ओ भली कीदी भवन पधारो राजा रुप
ओ आछी कीदी भवन पधारो राजा रुप
आवो नगर अयोध्या मे सारो सब काज
आवो नगर सेवन्त्री में सारो सब काज
ओ भली कीदी भवन पधारो राजा रुप
ए हारे हारे हा शोभा जद गयो भवन उज्जैन मोरे आज
ए माने तो मन्दीरिये उततारो नन्दलाल, निज घर काज सुधारो मोरे आज
ए केवलदास मल्याओ नन्दलाल, जनमजनम सुधारो मोरे काज
ए खेती नी करु मूतो वणजनी करु रघुराम मारी पूजी रे गोपाल
ए बालीनी बलू मतो जाली नीजलू रघुराम मारी पूंजी रे गोपाल
ए मे तो नाम मीरा बाई लियो, विशरा प्याला अमृत कियो
ए मे तो राम विभिक्षण लियो, अटलराज विभिक्षण कियो ए वालो मारो देवालो
श्याम,
“प्रत्येक दसम (१०) को अंतिम में बीरघंटा के नीचे बोली जाने वाली आरती (विदाई) ”
ए गावो नी मंगल गावो नी वदइयो
ए कलश बन्दावो नन्दलाल ए तो घर आया जी
ए पुसब वन्दावो नन्दलाल ए तो घर आया जी
ए राजा धनुष धरयो धरतीपरे
ए वडा रे वडा ए जो घर पुरियाओ माराज मलज्यो मेरा मोहन
ए तोडयो धनुष जनक सुख पाये
ए परणे पधारो राजा रुप रे दरबार ओ माराज मलज्यो मेरा मोहन
ए ढलकती ढाल फरुकत नेजा
ए मोलत ए आरकियो ए आरकियो
ए नारद मुनी जाणे शीश माए मरे
ए चल सखी उस रथ रंग मे बरे
ए रंग महल में काईमल काईमल मोतियन कियो सीताम्बर
के मल गावो ए नार अयोध्या पूर की ।।
ए अग्रदास को सल्यारा सतगुरु के मल मोतियन कियो
सीताम्बर के मल गावो ए नार अयोध्या पूर की ||